महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर चल रहा आंदोलन एक बार फिर राज्य की राजनीति और सामाजिक व्यवस्था के केंद्र में आ गया है। मराठा समुदाय लंबे समय से शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहा है, जिसे वह सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन का समाधान मानता है। हालांकि, यह मुद्दा केवल सामाजिक न्याय तक सीमित नहीं रह गया है — यह अब राजनीतिक अस्थिरता और जातीय असंतुलन का प्रतीक बन चुका है।
आंदोलन की पृष्ठभूमि:
मराठा समुदाय राज्य की आबादी का एक बड़ा हिस्सा है और ऐतिहासिक रूप से प्रभावशाली रहा है। लेकिन समय के साथ, ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक संकट, बेरोजगारी और शिक्षा की कमी के कारण समुदाय में असंतोष बढ़ा। इस असंतोष ने आरक्षण की मांग को हवा दी।
राजनीतिक परिप्रेक्ष्य:
सरकारों ने कई बार मराठा आरक्षण देने का प्रयास किया, लेकिन न्यायिक बाधाओं — खासकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा 50% आरक्षण सीमा का हवाला देते हुए — इन प्रयासों को अवैध ठहराया गया। इससे आंदोलन और उग्र होता गया।
वर्तमान स्थिति:
अगस्त 2025 में आंदोलन ने फिर जोर पकड़ा है। विभिन्न जिलों में बंद, रैलियाँ और अनशन जारी हैं। राज्य सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है, वहीं विपक्ष इसे सरकार की विफलता करार दे रहा है।
निष्कर्ष:
मराठा आरक्षण आंदोलन केवल एक समुदाय की मांग नहीं, बल्कि व्यापक सामाजिक असमानता और शासन की जवाबदेही पर सवाल है। इसका समाधान केवल आरक्षण से नहीं, बल्कि समावेशी नीतियों, शिक्षा और ग्रामीण विकास से ही संभव है।
